Saturday, July 26, 2008

संस्‍मरण

दाऊ वासुदेव चंद्राकर ने स्व. चंदूलाल चंद्राकर के कंधे से कंधा मिलाकर पृथक छत्तीसगढ़ राज्य में आंदोलन में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। दाऊ वासुदेव चंद्राकर के चलते ही दुर्ग जिले की राजनीति में छत्तीसगढ़ को चाहने वालों का वर्चस्व रहा। दाऊ वासुदेव चंद्राकर ने छत्तीसगढ़ के शोषण के खिलाफ और छत्तीसगढ़िया लोगों के हितों को लेकर हमेशा लड़ाई लड़ी और इस लड़ाई को वे छत्तीसगढ़ स्तर पर लड़ने के लिए सदैव प्रयासरत रहे। छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ियों के प्रति उनके समर्पण को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

अजीत जोगी
छ.ग. के प्रथम मुख्यमंत्री


दाऊ वासुदेव चंद्राकर एक कुशल राजनैतिक योद्धा थे। साहस और चतुराई उनमें कूट कूट कर भरी थी। वे जोखिम उठाने वाले व्यक्ति थे। सम्मान पर चोट उन्हें बर्दास्त नहीं था। उन्होंने बड़ा काम किया। मैं मानता हूं कि लंबी राजनैतिक पारी जो उन्होंने खेली वह तो महत्वपूर्ण था ही, लेकिन नर्सरी तैयार करने का जो काम उनके गुरुकुल में हुआ वह ज्यादा महत्वपूर्ण है। नई पीढ़ी को प्रशिक्षण देना भी एक पुनीत दायित्व है जिसे दाऊ जी ने निभाया। उनकी परंपरा का पोषण आवश्यक है।


विद्याचरण शुक्ल
पूर्व केन्द्रीय मंत्री

दाऊ वासुदेव चंद्राकर की कार्यशैली अलग थी। वे जमीनी नेता थे। मर्यादा को वे कभी नहीं छोड़ते थे। रामचरित मानस के मर्मज्ञ थे इसलिए सदैव मर्यादा की रक्षा करते थे। मेरे और उनके बीच गहरा संबंध था। राजनीति अपनी जगह थी लेकिन पारिवारिक संबंध सबसे ऊपर रहता था। दुख-सुख हर स्थिति में हम साथ-साथ रहें। उनके जाने से जो कमी आई है उसे महसूस ही किया जा सकता है।

मोतीलाल वोरा
सासंद (रा.स.)

दाऊ वासुदेव चंद्राकर मेरे पिता के मित्र थे। मुझे सदैव पुत्र तुल्य उन्होंने माना। दाऊ जी से हमारी पीढ़ी ने लड़ने और हिम्मत से आगे बढ़ते चलने का मंत्र पाया। बिना समझौतों के बड़े आदर्शो के लिए वे जिये। कांग्रेस को उन्होंन मजबूत ही नहीं बनाया सदैव दल के बल और यश के लिए समर्पित रहे। वे गांधी टोपी धारण करने वाले तेजस्वी बुजुर्गोंा की पीढ़ी के चमत्कृत करने वाले नेता थे। उनके द्वारा जो राह बताई गई है उस पर चलकर हम सेवा के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं।

चरणदास महंत
छ.ग.कां.क.

दाऊ वासुदेव चंद्राकर का स्नेह मुझे मिला यह मेरा सौभाग्य है। दाऊ जी उस कुशल किसान की तरह थे जो छोटे छोटे बछड़ों को देखकर यह पहचान लेता है कि आगे चलकर कौन एक भरोसेमंद और भार वहन करने में सक्षम बनेगा। उनकी नजर पैनी थी। वे ईकानदारी और निष्ठा के कायल थे। वे कहते थे कि सब गुणों से बड़ा है भरोसे का गुण। जो भी भरोसे के लायक बनता है वह स्वयं बड़ा बन जाता है। उनका घर राजनीति का नया गुरुकुल था। जहां से एक से एक योग्य शिष्य निकले। इनमें से अनेकों ने इतिहास रचा। उनके जाने के बाद ही अब उनके द्वारा तैयार सेनानियों की असल परीक्षा होगी।
दाऊ के सच्चे सपूत की आज परीक्षा होना है। देखें कौन निकलता पीतल कौन निकलता सोना है।
राजेन्द्र साहू
महामंत्री, जिला कांग्रेस कमेटी,
दुर्ग (ग्रामीण)

दाऊ वासुदेव चंद्राकर ने सदैव मुझे पुत्र तुल्य स्नेह दिया। दाऊजी के विचारों की चमक से सदैव छत्तीसगढ़ प्रकाशित रहा। सबको एक साथ ले चलने का जो कौशल दाऊजी में था वही उन्हें बड़ा बनाता था। वे रागद्वेष नहीं पालते थे। और यही हम सबको सिखाते भी थे। राजनीति में सेवा और त्याग की अहमियत को वे सदा बताते थे। वे एक वट वृक्ष की तरह थे। पीढ़ियों ने उनसे छाया पाया। वे सदा हमें राह दिखाते रहेंगे।

अरुण वोरा
पूर्व विधायक

दीगर राज्य से यहां आकर काम करने पर कोई एतराज नहीं है। वे काम करें, पैसा कमाएं, उद्योग लगायें, कोई दिक्कत नहीं, लेकिन स्थानीय लोगों के राजनैतिक अधिकार पर दखल न दें। छत्तीसगढ़ में राज छत्तीसगढ़ियों का होना चाहिए। सांस्कृतिक विशेषता, भाषाई खासियम और अहिंसा, सत्य तथा सरलता का जो रंग छत्तीसगढ़ पर चढ़ा है वह इसे विशिष्ट दर्जा देता है। जो इसका महत्व समझेगा वह यहां मान पायेगा। यह क्षेत्र दूसरों को आगे बढ़कर अपना बनाता है। दूसरे भी इसे अपना बनायें। यह कैसे होगा इसे वे सोचें। किसी को कमजोर समझने की भूल कोई न करे। सबका अधिकार है सम्मान से जीने का। हम छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी मान, आन, बान की बात करने से बुरा कहाते हैं। अजीब बात है। दबने, तलुवा सहलाने वालों का क्षेत्र नहीं है छत्तीसगढ़। सीधे सच्चे परोपकारी और अहिंसक लोग हैं यहां। उनके इन गुणों को कमजोर समझने वाले धोखे में हैं। अभी समय है। जब व्यक्ति का मान रहता है तब समाज मजबूत होता है। प्रदेश में वहां के लोग महत्व पाते तब राष्ट्र मजबूत होता है। यह स्वाभाविक है।

छत्तीसगढ़ जाग रहा है। उसके महत्व को समझना होगा। जागरण का शंखनाद हो चुका है। अंगड़ाई लेकर अपने हकों के लिए वह खड़ा हो इसके पहले उसे उसका हक दे दिया जाय। महाभारत से विनाश भी होता है।

दाऊ वासुदेव चंद्राकर

दाऊजी का परिवार सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में फैला है। वे व्यक्ति की योग्यता के अनुसार उसे प्रोत्साहित करते थे। सैद्धान्कि लड़ाई अपनी जगह और व्यक्तिगत संबंध अपनी जगह। इसे सब नहीं निभा पाते। दाऊजी निभाते थे। वे मेरे पिता और गुरु थे। साहित्य, संस्कृति, धर्म, राजनीति, कृषि सब के लिए वे समय निकाल लेते थे। वे वटवृक्ष थे। हम लोग आज छाया की कमी अनुभव करते हैं। उनके रहते हम सब तरफ से चिंतामुक्त थे। उनकी परंपरा पर चलने का प्रयास मै कर सकूं यही कोशिश रहेगी। बुजुर्गो का आशीर्वाद और बड़े भाइयों, गुरुओं का मार्गदर्शन मेरे साथ है। यही सम्बल है।

श्रीमती प्रतिमा चंद्राकर
पूर्व विधायक, खेरथा

दाऊजी के नहीं रहने से एक बड़ा शून्य आ गया है। उनके समर्थक और विरोधी सबको भरोसा रहता था कि दाऊ जी सही बात पर उचित स्टैण्ड लेंगे। बिगड़ी बना लेंगे। वे वेहद उदार थे। हर दीवाली में वे अपने घर पूजा करने के बाद सीधे माननीय मोतीलाल वोरा जी के घर पूजा में शामिल होने जाते थे। हम सब भी वहां मिलते थे। यह सही भारतीय परंपरा का पोषण है। सबके घर में समृद्धि, उजास, प्रकाश फैले। सर्वे भवन्तु सुखिन: यह भाव है जिसे वे जीवन में उतार चुके थे। वे धर्म के अनुकूल चलने वाले आदर्श योद्धा थे। उनकी ईकानदारी सर्वविदित थी। उनसे असमत लोग भी संरक्षण पा सकते थे। उदारता उनकी विशेषता थी। हमारा सौभाग्य है कि हमारी पीढ़ी को उनका पितृवत स्नेह मिला। हम सबने दाऊजी से राजनीति के उच्च मानदंडो पर चलकर आगे बढ़ना लड़ना सीखा।
मदन जैन
सचिव,
प्रदेश कांग्रेस कमेटी, छ.ग.

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