Saturday, July 26, 2008

अगासदिया के हरि ठाकुर अंक हेतु दाऊ वासुदेव चंद्राकर का साक्षात्कार

साक्षात्कारकर्त्ता : रामप्यारा पारकर


प्रश्न - दाऊजी, कृपया हरि ठाकुर जी के संबंध में विचार रखें।

उत्तर - स्व. हरि ठाकुर जी ऐसे महान पिता के यशस्वी पुत्र थे जिन्होंने यथा पिता तथा पुत्र की उक्ति को ही अपने जीवन में चरितार्थ किया। उनके पिता स्व. ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने छत्तीसगढ़ की नि:स्वार्थ सेवा की थी। उन्होंने अपना सर्वस्व छत्तीसगढ़ महतारी के चरणों में समर्पित कर दिया था। वे गांधी-विनोबा की परंपरा के संत व्यक्तित्व के राजनेता थे जो छत्तीसगढ़ के लिए और छत्तीसगढ़ के लिए मरे। इसीलिए यहां की जनता ने उन्हें श्रद्धापूर्वक त्यागमूर्ति कहा। आज तक कोई भी अन्य नेता त्यामूर्ति नहीं कहला सका। इसी से सिद्ध होता है कि वे अद्वितीय त्यागी महापुरुष थे। स्व. हरि ठाकुर जी अपने पिता से विरासत में मिले राजनीतिक परिवेश को ही त्याग कर साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया और साहित्य क्षितिज पर जाज्वल्यमान नक्षत्र की भांति प्रकाशित हुए। ऐसा उदाहरण बिरला ही मिलेगा जब एक स्थापित नेता का योग्यपुत्र राजनीति से ही सन्यास ले ले। राजनीतिक जीवन की चकाचौंध उन्हें तनिक भी आकर्षित नहीं कर सकी। हरि ठाकुर जी का और मेरा कार्यक्षेत्र सर्वथा पृथक होने के कारण लम्बे समय तक उनसे कोई विशेष संपर्क नहीं हो सका। उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के संबंध में समाचार पत्रों के माध्यम से जानकारी प्राप्त् कर उनके व्यक्तित्व से प्रभावित अवश्य होता रहा। जब स्व. चंदूलाल चंद्राकर जी ने पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की आवश्यकता को हृदयंगम करके सर्वदलीय मंच का गठन किया तभी उनसे घनिष्ठता एवं आत्मीयता स्थापित हुई। उसके पूर्व उनसे हल्की फुल्की जान पहचान मात्र थी। हरि ठाकुर जी लंबे समय से पृथक राज्य की महत्ता अपनी लेखनी के माध्यम से प्रतिपादित कर रहे थे क्योंकि वे सच्चे अर्थोंा में डॉ. खूबचंद बघेल की परंपरा के ही विचारक थे। डॉ. साहब के पृथक राज्य के स्वप्न को मूर्तरुप देने हेतु वे तन मन धन न्यौछावर कर रहे थे। डाक्टर साहब के निधन से उन्हें गहरा धक्का लगा था। उन्होंने छत्तीसगढ़ के महान सपूत डॉ. खूबचंद बघेल शीर्षक लेख में उनके निधन को अपूर्णनीय क्षति निरुपित करते हुए लिखा कि उनके निधन से छत्तीसगढ़ ने अनुभव किया कि उसका आधार स्तंभ ही ढह गया। छत्तीसगढ़ ने उस दिन अपना सर्वाधिक लोकप्रिय नेता खो दिया। डॉ. साहब छत्तीसगढ़ की माटी के सर्वाधिक मोहक सुगंध थे। वह सुगंध छत्तीसगढ़ की माटी में समा गयी। बीमार छत्तीसगढ़ का सर्वाधिक कुशल डॉ. छत्तीसगढ़ को ही बीमार छोड़कर चला गया। छत्तीसगढ़ का अगाघ प्रेम भी उसे नहीं रोक पाया। छत्तीसगढ़ के आकाश में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। निर्मल प्रकाश का वह पुंज बुझ गया, जागरण की वह व्याकुल वाणी मौन हो गयी। डॉ. साहब के निधन के पश्चात पृथक राज्य हेतु समय समय पर भी छिटपुट आंदोलन होते रहे, उन सब में मनसा वाचा अपनी भागीदारी देकर हरि ठाकुर जी हमेशा सक्रिय रहे तथा अपनी लेखनी से आवाज बुलंद करते रहे। जब चंदूलाल चंद्राकर के नेतृत्व में पृथक राय आंदोलन छिड़ा तो उन्हें मानो डॉ. खूबचंद बघेल जैसा सच्च कर्णधार मिल गया। वे बड़ी आस्था के साथ सर्वदलीय मंच से जुड़ गए। वैसे तो छत्तीसगढ़ आंदोलन से अनेक लोग जुड़े किंतु निश्छल भाव से जुड़ना सर्वथा भिन्न बात है। हरि ठाकुर जी छत्तीसगढ़ आंदोलन के नाम पर दुकानदारी चलाने वालों को कभी भी पसंद नहीं किया। वे सही मायने में छत्तीसगढ़ राज्य के हिमायती नेताओं को शीघ्र पहचान जाते थे। अपनी कसौटी पर खरे उतरने पर ही उन्होंने चंदूलाल चंद्राकर का साथ दिया था।

प्रश्न - सर्वदलीय मंच के साथ साथ कार्य करते हुए आपने हरि ठाकुर जी के व्यक्तित्व में ऐसे कौन से विशेष गुण देखे जिनसे आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकें ?

उत्तर - हरि ठाकुर जी छत्तीसगढ़ के अग्रणी साहित्यकार थे। वे बड़े अख्खड़ स्वभाव के थे। न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर यही भाव उनके व्यक्तित्व में झलकता था। छत्तीसगढ़ के प्रति समर्पण एवं साहित्य का गहरा ज्ञान उन पर राजनीति से भारी पड़ गया, फलत: अपने पिता से प्राप्त् राजनीतिक विरासत को तिलांजली देते हुए साहित्य साधना में लीन हो गए।
प्रश्न - पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की प्रथम वर्षगांठ पर राज्य शासन द्वारा अनेक सम्मान वितरित किये गए। तब हरि ठाकुर जी का चयन किसी भी पुरस्कार के लिए क्यों ही किया गया जबकि अनेक लोग ऐसा मानते हैं कि वे पत्रकारिता के प्रथम हकदार थे ?

उत्तर - राज्य शासन द्वारा स्थापित विभिन्न पुरस्कारों हेतु योग्य एवं पात्र व्यक्तियों के चयन हेतु शासन द्वारा चयन समितियां बनाई गई थी। यह चयन करने वालों की बुद्धि पर निर्भर था कि वे हरि ठाकुर जी का कितना मूल्यांकन कर पाये। संभवत: उनके विषय में विचार ही न किया गया हो। क्योंकि उनकी तुलना में अन्य सभी सम्मान के अभिलाषी बौने सिद्ध होते। हरि ठाकुर जैसे निर्विवाद व्यक्ति को सम्मान पुरस्कारों के मायाजाल में न घसीटे यही उत्तम होगा। एक सच्चे वीतरागी संत व्यक्ति को जनता से जो सम्मान मिलता है। उसकी तुलना में कोई भी पुरस्कार तुच्छ सिद्ध होता है।

प्रश्न - छत्तीसगढ़ राज्य बने दो वर्ष पूरा होने जा रहे ैं किंतु अनेक लोग ऐसा मानते हैं कि डॉ. खूबचंद बघेल, चंदूलाल चंद्राकर व हरि ठाकुर के सपनों का छत्तीसगढ़ नहीं बन पा रहा है। इस पर व्यक्तिगत प्रतिक्रिया बताइए ?

उत्तर - छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण हेतु लंबे समय से शांतिपूर्ण आंदोलन चलाया गया था। डॉ. खूबचंद बघेल से लेकर चंदूलाल चंद्राकर व हरि ठाकुर तक अनेक अग्रणी नेताओं ने सच्चे दिल से आंदोलन का नेतृत्व किया। समय समय पर संचालित आंदोलन में शामिल नेताओं ने शोषणमुक्त छत्तीसगढ़ राज्य में भाग्योदय होने जैसी बातों की कल्पना भी कर ली थी। सभी ने अपने मन से ऊंचे ऊंचे आकांक्षाए संजो ली। सभी का सपना पूर्ण रुप से साकार तो नहीं हो सकता। रही बात आंदोलन के अग्रणी नेताओं की सो उन्होंने छत्तीसगढ़ से प्राप्त् राजस्व की तुलना में विकास कार्य अपेक्षाकृत कम होने को पृथक राज्य की जरुरत का एक प्रमुख कारण गिनाया था। मध्यप्रदेश में रहते हुए छत्तीसगढ़ सौतेला व्यवहार किये जाने की भी बात उछाली गई थी। अभी मात्र छत्तीसगढ़ राज्य के अस्तित्व में आने का सपना सपना ही पूरा हुआ है। नये राज्य की सरकार के पास कोई जादुई छड़ी तो नहीं है जो देखते ही देखते इसे प्रगति के शिखर पर पहुंचा दे। इसके लिए धैर्य की जरुरत है। राज्य बने अभी बहुत कम समय हुआ है और फिर पहले साल ही अकाल का सामना करना पड़ा और इस वर्ष भी अकाल की काली मंडरा रही है। राज्य शासन के एक वर्ष की हम सबसे बड़ी उपलब्धि हम यह मान सकते हैं कि ४० प्रतिशत स्थापना व्यय रखकर ६० प्रतिशत विकास में खर्च किया जा रहा है। इससे सभी विधायक अपने मंत्रियों मध्यप्रदेश में अपने तीन साल के कार्यकाल में जितना का नहीं करा सके वे उतना नये राज्य में एक वर्ष में ही करा चुके हैं। मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ के हिस्से में ७५ करोड़ रुपये आता था, अब नये राज्य के बजट में ५५० करोड़ रुपया रखा गया है। यही सब छोटे राज्य का लाभ है। शिक्षा के क्षेत्र में आशातीत प्रगति हुई है। कृषि महाविद्यालयों, मेडिकल कालेज की संख्या में वृद्धि के साथ ही तीन वर्षीय मेडिकल कालेजों की स्थापना सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धियां है।

प्रश्न - लंबे समय से छत्तीसगढ़ में अन्य प्रांतों के लोग आते रहे हैं तथा यहां व्यापार व्यवसाय के क्षेत्र में कम समय में ही धन्ना सेठ बन गये हैं। यहां के मूल निवासी आज भर लगभग विपन्नता में पड़े हुए हैं। इसीलिए पृथक राज्य के हिमायती नेताओं ने छत्तीसगढ़ को बाहरी लोगों के चारागाह होने जैसी बात भी जोरशोर से उछालकर इस शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई थी। स्व. हरि ठाकुर जी ने डॉ. खूबचंद बघेल के संबंध में लिखा है कि छत्तीसगढ़ मातृसंघ के माध्यम से डॉ. साहब ने शासकीय तथा गैरशासकीय उद्योगों एवं संस्थानों की नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दिलाने के लिए कई आंदोलन छेड़े। शोषण और दमन के विरोध में उनका स्वर प्रखर से प्रखरतम होता गया। संभवत: डॉ. साहब से ही प्रभावित होकर हरि ठाकुर जी ने यह लिखा होगा -
लोटा लेके आने वाला इहां टेकाथे बंगला,
जांगर टोर कमाने वाला हैं कंगला के कंगला।

प्रश्न - बाहर से लोग यहां आकर विधायक मंत्री बनकर राजनीतिक प्रभुत्व भी कायम करते रहे हैं, ऐसे अनेक उदाहरण गिनाये जा सकते हैं। किन्तु छत्तीसगढ़ के लोग बाहर जाकर विधायक मंत्री बने हों, ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है। कृपया इस विषय पर कुछ बतायें ?

उत्तर - हमारे यहांे से लोग बाहर जाते तो है पर कमा खाकर वापस आ जाते हैं, वे कोई संग्रह नहीं कर पाते। संग्रही प्रवृत्ति का छत्तीसगढ़ियों में नितांत अभाव है। यहां परंपरागत संस्कार ही कुछ ऐसी है कि आज दिन भर के खाने की व्यवस्था हो जाने पर ही कल की चिंता नहीं करते। घर गृहस्थी संभालने के मामले में यहां की महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर परिश्रम करती हैं वरन कुछेक परिवारों में घर गृहस्थी के मुखिया के रुप में कार्य करती देखी जा सकती है। यहां कुछ लोग जो डॉ., वकील बन गये हैं अथवा भिलाई इस्पात संयंत्र जैसे संस्थानों में या शासकीय नौकरियों में लग गए हैं इन्हें छोड़कर शेष लोग विपन्नता की स्थिति में पड़े हुए हैं फिर भी संतोषी सदा सुखी की उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं। पहले कभी संपन्नता के प्रतीक माने जाने वाले दाऊ लोगों की स्थिति भी आज बड़ी दयनीय हो चली है। व्यापार में यदि रुचि भी हो तो इसके तौर तरीकों का ज्ञान नहीं होना सबसे बड़ी बाधा है। झूठ बेइमानी से धन अर्जित करने की बात मूल छत्तीसगढ़ियों कभी सोच नहीं सकते। गांवों में छोटे छोटे दुकान चला रहे हैं वे किसानों से अधिक खुशहाल हैं। छोटे मोटे धंधा करने वाले छत्तीसगढ़ी लोग बाहरी लोगांंे की तुलना में सक्षम हैं ऐसा नहीं मान सकते। बाहरी लोगों का यहां आने का उद्देश्य मात्र पैसा कमाना है। छत्तीसगढ़ी लोग केवल भरण पोषण के लिए बाहर जाते हैं। यहां के लोग रोजी मजदूरी नहीं मिलने पर व्याकुल होकर भागते हैं। बाहरी लोग धनार्जन के उद्देश्य से यहां आते हैं। अकाल की स्थिति में शासन द्वारा राहत कार्य चलाये जाते हैं लेकिन उसमें सीमित लोगों को ही काम मिल पाता है। अत: भुखमरी से पीड़ित अतिरिक्त लोग पेट की आग बुझाने पलायन कर जाते हैं या समय पर खेती किसानी संभालने वापस भी आ जाते हैं। यहां के शांतिप्रिय भोले भाले लोग देश के किसी भी कोने में स्थायी रुप से बस नहीं पाते किंतु बाहर से आकर यहां लोग व्यापार व्यवसाय के लिए हैं तथा इसे अपने मूल प्रांत की अपेक्षा शांतिप्रिय व सुरक्षित पाकर स्थायी रुप से बस जाते हैं। छत्तीसगढ़ का शांतिपूर्ण माहौल उन्हें भा जाता है। पैसा कमा लेने के बाद उन्हें अपना देश जाना असुरक्षित सा लगता है। यहां के भोले भाले छत्तीसगढ़ियों के बीच वे निश्चिंत भाव से सुरक्षित हो जाते हैं। अन्य प्रांतों के लोग देश के किसी भी कोने में जहां रोजगार व्यापार व्यवसाय का अच्छा अवसर है वहां जाने के लिए तैयार रहते हैं वे मजबूरी में पलायन नहीं करते। यहां के लोगों में ऐसा न कोई हुनर है न बल है न देश छोड़कर परदेश भागने की मानसिकता है। स्व. हरि ठाकुर को ही ले लीजिये। वे प्रकाशन द्वारा जीविका चला रहे थे, बिजिनेस नहीं कर रहे थे अत: उनकी आर्थिक स्थिति ज्यों की त्यों बनी रही। उनके पिता ठाकुर प्यारेलाल त्यागमूर्ति कहलाए। वास्तव में प्रत्येक छत्तीसगढ़ त्याग के बल पर जीता है। छल प्रपंच के लिए उसके हृदय में कोई स्थान नहीं होता।

ठाकुर प्यारेलाल सिंह का प्रसंग आते ही मैंने दाऊजी से उनके संबंध में कोई विशेष उल्लेचनीय बात बताने का अनुरोध किया तो उन्होंने बड़े आदर से १९५२ चुनाव का संस्मरण सुनाया।

ठाकुर साहब अपना सर्वस्व यहां की जनता के हित में लुटा चुके थे। उनका जीवन त्यागी तपस्वी तथा बलिदानी था। यहां की जनता उन्हें दिलोजान से चाहती थी। वे विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन से प्रभावित थे। १९५४ में उनकी मृत्यु हुई। जब उनका शव दुर्ग होते हुए रायपुर ले जाया गया तो हजारों की संख्या में लोग उनके अंतिम दर्शन हेतु पटेल चौक पर सड़क के दोनों किनारे पर जमे हुए थे। आज भी हमें ठाकुर प्यारेलाल सिंह जैसे समर्पित सेवाभावी व त्यागी जनसेवकों की नितांत आवश्यकता है। ताकि हम उनके सपनों का छत्तीसगढ़ बना सके।
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